आचार्य शिवबालक राय की 109 वीं जयंती मनाई गई

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

जागता झारखंड ब्यूरो साहिबगंज
हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध समालोचक आचार्य शिवबालक राय की 109 वीं जयंती का आयोजन किया गया। प्रगति भवन में आयोजित जयंती सभा में आचार्य जी के छात्र, सहकर्मियों एवं साहित्य प्रेमियों ने भाग लिया। सभा की अध्यक्षता डॉ रामजन्म मिश्र कुलाधिपति, विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ भागलपुर सह प्रधान संपादक प्रगति वार्ता ने किया।  आचार्य शिवबालक राय की तस्वीर पर माल्यार्पण कर कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए ड़ा सच्चिदानंद,सचिव झारखंड राजभाषा साहित्य अकादमी ने कहा कि आचार्य शिवबालक राय हिंदी आलोचना के शिखर पुरुष है जो हजारी प्रसाद द्विवेदी, पंडित रामचंद्र शुक्ल की परंपरा के वर्ण्य आलोचकों में है ।आचार्य श्री आदि कवि महर्षि वाल्मीकि और लोकमंगल के महाकवि गोस्वामी तुलसीदास के साहित्य पर आलोचनात्मक दृष्टि से गंभीर विवेचन किया है। वाल्मीकि के कवि कर्म और गोस्वामी तुलसीदास के भक्ति एवं श्री राम के लोक मर्यादा का बड़ा सुंदर विवेचन किया है। दो रामजन्म मिश्र कुलाधिपति विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ ने कहा कि आचार्य राय के व्यक्तित्व में वाल्मीकि, व्यास और कालिदास का त्रयी संघात उनके जीवन का सौंदर्य लौकिक होते हुए भी वे लोकोत्तर थे। स्थित प्रज्ञ और महायोगी थे। व्यक्ति मरता है और उसका व्यक्तित्व अमर होता है। यही व्यक्तित्व विश्व का प्रकाश स्तंभ होता है। प्रगतिवाद से प्रारंभ होकर मेघ की सोपान पंक्ति पर आरोहण कर, दिनकर को पुष्प माल्य अर्पित करने की महती भावना, वाल्मीकि और तुलसी के रूप में अवतीर्ण होकर भक्ति साहित्य के सौंदर्य शास्त्र में समा जाने के लिए अवगाहन करते हुए अवलीन हो गये। साहित्यकार अनिरुद्ध प्रभाष  ने   कहा कि आचार्य जी ज्ञान के प्रतिमान प्रतीक थे। सहजता, सरलता एवं भक्ति भाव से लबरेज संत आचार्य जी से पढ़ने का अवसर किसी वरदान से काम नहीं है। आचार्य शिवबालक के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए  गौरव रामेश्वरम ने कहा कि आचार्य जी साहिबगंज महाविद्यालय में 5 दिसम्बर 1955 से जून 1976 तक साहिबगंज कॉलेज के प्राचार्य रहे। आचार्य जी के कार्यकाल में साहिबगंज कॉलेज साहित्य गतिविधियों का केंद्र था और महाविद्यालय  की गिनती प्रतिष्ठित कॉलेज में होती थी। राष्ट्रकवि दिनकर भी साहिबगंज कॉलेज में आए थे।  दिनकर जी ने अपनी डायरी में इसकी चर्चा किया है। सभा की अध्यक्षता कर रहे डॉ रामजन्म मिश्र ने आचार्य जी के साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि  समालोचना की पुस्तक ‘दिनकर’ (1950) में प्रकाशित होने के बाद आचार्य जी की गिनती प्रसिद्ध समालोचकों में होने लगी। उनकी अन्य रचनाओं में ‘साहित्य के सिद्धांत और कुरुक्षेत्र,(1954) ‘काव्य में सौंदर्य उदात्त तत्व ‘(1968), ‘कालिदास के सौंदर्य सिद्धांत और मेघदूत’ (1964) ‘वाल्मीकि रामायण एक काव्य अनुशीलन’ (1979), ‘मानस का रूप विज्ञान और मौलिकता’ (1996),
‘भक्तिकाल का  सौंदर्य शास्त्र’ और प्रतीकवाद मुख्य कृतियां हैं। आचार्य आचार्य शिवबालक राय के भीतर एक जन पुरुष सोया हुआ है जिस किसी भी शिक्षण संस्थान में भी रहे न केवल प्राध्यापकों एवं उन कर्मियों के  मसीहा रहे।  आचार्य जी साहिबगंज कॉलेज के अलावा जून 76 से नवंबर 1977 स्नातकोत्तर  हिंदी विभाग भागलपुर विश्वविद्यालय के विभाग अध्यक्ष रहे और वहां से अवकाश प्राप्त किया। सिद्धू कानों महाविद्यालय बरहरवा में  1978 से दिसंबर 1979 तक प्रधानाचार्य रहे। श्री भुवनेश्वरी राजा महाविद्यालय में सितंबर 1979 से जुलाई 1987 तक प्रधानाचार्य रहे।  मुरारी प्रसाद सिंह ने कहा कि आचार्य शिवबालक राय हमारे गांव के आदर्श पुरुष थे।  गांव के विद्या संस्थान में अपने ग्राम बन्धुओ की  गोष्ठी में अपने ज्ञान का व्याख्यान करते शिक्षा के महत्व को समझते रामायण रामचरितमानस के मर्म को समझते और वाल्मीकि जयंती का आयोजन करते थे। आचार्य जी से गांव रन्नूचक भागलपुर की प्रतिष्ठा  ग्लोबल हो गई है। कार्यक्रम में मनोरंजन भोजपुरी साहित्य परिषद की सरिता तिवारी, हर्ष कुमार मिश्र, संताली साहित्यकार विमल मुर्मू,मार्था मूर्मु, नकुल मिश्र, अनुपमा मिश्रा , कर्मचारी संघ के  भारत यादव अमृत प्रकाश, उपेंद्र कुमार राय मनोज कुमार लोहार मुख्य रूप से उपस्थित थे।

Touphik Alam
Author: Touphik Alam

Leave a Comment

और पढ़ें

  • Buzz4 Ai
  • Buzz Open / Ai Website / Ai Tool