इरबा मदरसा मजहरुल उलूम में भव्य जलसा-ए-दस्तारबंदी, 73 छात्रों को पगड़ी बांधा गया

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मुजफ्फर हुसैन, जागता झारखण्ड, ब्यूरो

इरबा स्थित मदरसा मजहरुल उलूम में बुधवार की देर रात एक भव्य जलसा-ए-दस्तारबंदी का आयोजन किया गया। जलसा-ए-दस्तारबंदी का आयोजन एक महत्वपूर्ण अवसर था, जिसमें राँची और आसपास के क्षेत्रों से हजारों-हजार लोग एकत्रित हुए थे। इस अवसर पर मदरसा मजहरुल उलूम के 73 छात्रों ने अपनी हिफ्ज की शिक्षा पूरी की, जिन्हें पगड़ी बांधकर और हाफिज का सर्टिफिकेट प्रदान कर सम्मानित किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता हजरत मौलाना फरीदुद्दीन कासमी, दारुल उलूम देवबंद ने की, जबकि मुख्य अतिथि के रूप में हजरत मुफ़्ती उमर आबेदीन कासमी मदनी, जनरल सेक्रेटरी, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल तेलंगाना ने शिरकत की। समारोह में हजरत मौलाना जमील अहमद कासमी, बैंगलोर भी प्रमुख रूप से उपस्थित थे। जलसे का आयोजन मदरसा मजहरुल उलूम प्रशासन की तरफ से किया गया, जिसका उद्देश्य हिफ्ज-ए-कुरआन को पूरा करने वाले छात्रों को उनके समर्पण और प्रयासों के लिए सम्मानित करना था। कार्यक्रम में शिक्षकों, छात्रों और उनके परिवारों के साथ ही कई प्रतिष्ठित समुदाय के सदस्य भी मौजूद थे। कार्यक्रम में हिफ्ज-ए-कुरआन के महत्व और उसके धार्मिक तथा सामाजिक योगदान पर विशेष जोर दिया गया। हजरत मौलाना फरीदुद्दीन कासमी, दारुल उलूम देवबंद ने छात्रों को उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं दीं और उनका उत्साहवर्धन किया। हजरत मौलाना फरीदुद्दीन कासमी, दारुल उलूम देवबंद ने कहा, मदरसा का जीनत हमारे तलबा होते हैं, तलबा से ही मदरसा का जीनत हासिल होती है, उसके बगैर मदरसा को जीनत हासिल नहीं होगी। यह मदरसा हमारे तरक्की का जरिया है, हमारे ईमान का बका का जरिया है। अगर यह मदारीस ना हों तो जाहिर है कि ईमान की हिफाजत मुश्किल हो जाएगी। अगर यही दारुल उलूम देवबंद का कायाम अमल में नहीं आता तो हिंदुस्तान में कोई मस्जिद की मीनारों से ‘अल्लाह हू अकबर’ की आवाज सुन नहीं सकते थे। अल्लाह हू अकबर की आवाज हम सुन रहे हैं क्योंकि दारुल उलूम देवबंद कायम है।

हजरत मुफ़्ती उमर आबेदीन कासमी मदनी, जनरल सेक्रेटरी, ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल तेलंगाना ने भी कुरान ए करीम के महत्व और इस्लाम में इसके प्रभाव को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, सबसे पहला पैगाम ये है कि कुरान ए मजीद अल्लाह की किताब है और यह पूरी दुनिया में इंकलाब लाने, तब्दीली लाने और इंसानों का मुकद्दर बनाने के लिए भेजी गई है। इसी किताब ने 1500 साल पहले मुसलमानों का मुकद्दर बदला था। आज भी अगर मुसलमान अपनी तकदीर बनाना चाहते हैं, तो कुरान को अपनाएं। हजरत मुफ़्ती उमर आबेदीन कासमी मदनी ने आगे कहा, अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अल्लाह ताला इस किताब के जरिए कितनी कौमों को बुलंदी, ताकत और इख्तिदार अता करते हैं और कितनी कौमों को जलील और रुस्वा भी करते हैं।

हजरत मौलाना जमील अहमद कासमी ने कहा, चार किताबें अल्लाह ने दुनिया में नाजिल की हैं – तौरेत, इंजील, जबूर और सबसे आखिरी कुरान ए करीम। कुरान ए करीम एकमात्र किताब है जिसका हाफिज दुनिया में पैदा हुआ। तौरेत, इंजील और जबूर एक बार में नाजिल हुए, जबकि कुरान ए करीम 23 साल में नाजिल हुआ।

जलसा-ए-दस्तारबंदी का उद्देश्य इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा देना और धार्मिक एकता को प्रोत्साहित करना था। जलसा-ए-दस्तारबंदी में विशेष रूप से मुफ़्ती इमरान नदवी, मुफ़्ती वसी उर रहमान नदवी, मुफ़्ती अबू उबैदा, मुफ़्ती फुरकान कासमी, मौलाना समीउल हक मजाहिरी, मास्टर अब्दुल कुद्दूस, कारी अय्यूब हसन फलाही आदि धर्मप्रेमियों और उलेमा की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही। जलसा की सफलता पर आयोजकों और उपस्थितों ने इस आयोजन को एक ऐतिहासिक अवसर के रूप में देखा। इस प्रकार का आयोजन न केवल इस्लामी शिक्षा को बढ़ावा देने में सहायक है, बल्कि यह समाज में धार्मिक सहिष्णुता और एकता को भी प्रोत्साहित करता है।
Touphik Alam
Author: Touphik Alam

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