कुंदरकी ने भी गढ़ दी, सुंदर-सी परिभाषा,
जात-पात की नहीं है कोई भी अभिलाषा।
क्या भाजपा की जीत, सपा की हुई हैं हार,
क्या पीडीए से हुई है सबकी कोई तकरार!
सब अभूतपूर्व अखिलेश को नहीं स्वीकार।
कुंदरकी ने भी गढ़ दी, सुंदर-सी परिभाषा,
जात-पात की नहीं है कोई भी अभिलाषा।
कभी बनाने वाली थी लोहियाजी का गांव,
अब नजर आ रहे हैं उन्हें अंबेडकर के पांव!
ये कर रहे उम्मीद है चल जाएगा नया दांव।
कुंदरकी ने भी गढ़ दी, सुंदर-सी परिभाषा,
जात-पात की नहीं है कोई भी अभिलाषा।
कहते थे यहां सपा का भू-भू जीत जाएगा,
उसे ही चुनेंगे लोग कोई नहीं टिक पाएगा!
हर बार फार्मूला कामयाब नहीं हो पाएगा।
संजय एम. तराणेकर
(कवि, सूत्रधार व समीक्षक)
इंदौर (मध्यप्रदेश)
98260-25986