जागता झारखंड नगर संवाददाता
राँची सामाजिक कार्यकर्ता तनवीर अहमद ने महागठबंधन की सरकार को बधाई दी साथ ही कहा झारखंड चुनाव 2024 में महागठबंधन की जीत और भाजपा की हार ने राज्य की राजनीतिक दिशा को स्पष्ट कर दिया है। यह चुनाव सिर्फ राजनीतिक दलों के बीच की लड़ाई नहीं थी, बल्कि यह झारखंड की अस्मिता आदिवासी गौरव और सामाजिक न्याय की लड़ाई थी।
हेमंत सोरेन ने अपनी जद्दोजहद संघर्ष और कियादत से साबित किया कि झारखंड की जनता उनके साथ है। बीजेपी और केंद्र सरकार ने ईडी, सीबीआई और अन्य केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर उन्हें झूठे भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसाने की कोशिश की। लेकिन जेल से बाहर आकर उन्होंने “हेमंत है तो हिम्मत है” के नारे को सच साबित किया। उनकी जोड़ीदार कल्पना सोरेन ने भी उनका हर कदम पर साथ दिया जिससे दोनों को भाजपा द्वारा “बंटी और बबली” कहकर मजाक उड़ाने का जवाब जनता ने वोटों से दिया।
भाजपा ने झारखंड के आदिवासी क्षेत्रों में बाहरी नेताओं जैसे हिमंता बिस्वा शर्मा, शिवराज सिंह चौहान, और निशिकांत दुबे को उतारकर साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का प्रयास किया। लेकिन झारखंड की जागरूक जनता विशेषकर संथाल परगना के महान आदिवासी समुदाय ने इन घुसपैठियों को नकार दिया और अपने जल-जंगल-जमीन की लड़ाई में महागठबंधन का साथ दिया।
भाजपा का घुसपैठ वाला नकली मुद्दा जो झारखण्ड प्रभारी हेमंता विश्व शर्मा ने पूरी ताकत से उठाया था पूरी तरह से विफल हो गया। संथाल परगना क्षेत्र के आदिवासी समुदाय ने निशिकांत दुबे हिमंता बिस्वा शर्मा और शिवराज सिंह जैसे घुसपैठियों को अपने क्षेत्र से बाहर का रास्ता दिखाया जो आदिवासी समुदाय को बहकाने की कोशिश कर रहे थे। यह संथाली आदिवासी लोगों की सतर्कता और समझदारी का प्रतीक है। उन्होंने भाजपा के साम्प्रदायिक और विभाजनकारी एजेंडे को नकारते हुए, अपने स्वाभिमान और झारखंड की अस्मिता की रक्षा की।
हेमंत सोरेन को जेल भेजने की कोशिशों को झारखंड की जनता ने अपनी अस्मिता पर हमला माना। यह चुनाव आदिवासी स्वाभिमान को बचाने और उसे फिर से ज़िंदा करने का ज़िद बन गया। जनता ने बिरसा मुंडा के आदर्शों को अपनाते हुए भाजपा के मनुवादी, सामंतवादी और सांप्रदायिक एजेंडे को नकारा दिया।
झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार ने महिलाओं के लिए मईया सम्मान योजना पेंशन योजनाओं में सुधार बिजली बिल माफी किसानों का कर्ज माफ़ और आवास योजनाओं जैसी कई कल्याणकारी योजनाएं लागू की। इन योजनाओं का सीधा लाभ जनता को मिला जिसने गठबंधन सरकार के प्रति विश्वास बढ़ाया।
दूसरी तरफ भाजपा के पास झारखंड के लिए कोई स्पष्ट मुख्यमंत्री चेहरा नहीं था। रघुवर दास जो पहले से ही बाहरी और गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के तौर पर बदनाम थे फिर से बढ़ावा देने का प्रयास विफल रहा। इसके अलावा गैर-झारखंडी नेताओं पर निर्भरता ने झारखंड के लोगों को भाजपा से और दूर कर दिया। निशिकांत दुबे को झारखण्ड का गुप्त रूप से मुख्यमंत्री बनाने का षड्यंत्र बीजेपी की नैया डुबोने में आग में घी का काम कर गई।
भाजपा ने केंद्रीय एजेंसियों और मुख्यधारा की मीडिया का भरपूर दुरुपयोग किया। लेकिन जनता ने इन झूठे प्रचारों को खारिज कर दिया।
कांग्रेस, झारखंड मुक्ति मोर्चा और अन्य महागठबंधन दलों ने एकजुट होकर लड़ाई लड़ी। राष्ट्रीय जनता दल और भाकपा माले का प्रदर्शन पिछले बार से अच्छा और काफ़ी बेहतर रहा। इस गठबंधन ने भाजपा के मजबूत नेटवर्क को ध्वस्त करते हुए 35 से अधिक सीटें जीती जो लगभग 90% स्ट्राइक रेट के बराबर है।
मोदी-शाह-योगी हेमंता के नेतृत्व में झारखंड में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश की। लेकिन जनता ने नफरत की राजनीति को नकारते हुए सामाजिक न्याय और विकास के पक्ष में फैसला लिया।
झारखंड चुनाव 2024 में महागठबंधन की जीत केवल एक राजनीतिक जीत नहीं है, यह झारखंडी अस्मिता, आदिवासी स्वाभिमान और सामाजिक न्याय की जीत है झारखण्ड की जनता खास कर आदिवासी समाज ने राज्य के मुस्लिम समाज के पीड़ा और उसके दर्द को अपना दर्द और पीड़ा समझा, आदिवासी मुस्लिम दलित का मजबूत सामाजिक गठबंधन पुरे भारत के लिए एक मिसाल साबित हुआ। इस चुनाव परिणाम के बाद हेमंत सोरेन का नेतृत्व झारखंड के लिए नई उम्मीद और मोदी के दमनकारी नीति का एक मॉडल बन चुका है।