जागता झारखंड संवाददाता शिकारीपाड़ा (दुमका)आज शनिवार को प्रखंड क्षेत्र के मुस्लिम बाहुल्य गांव ढेबाडीह , ढाका, कोल्हाबदार, शिवतल्ला, खाडूकदमा, सोनाधाब, पलासी, चित्रागाड़िया, सरसडंगाल, झुनकी, पिनर गाड़िया, आदि मुस्लिम गांवों में बकरीद(ईद ऊल अजहा) का त्योहार मनाया गया । सुबह से लोग नहा धोकर पंजाबी पजामा पहन कर सुरमा इत्तर लगाकर बकरीद (ईद ऊल अजहा) की नमाज पढ़ने ईदगाह गए। छोटे छोटे बच्चे भी आज काफी खुश दिखाई दिए। बकरीद (ईद ऊल अजहा) का त्योहार खुशियों और भाईचारे का त्योहार है रमजान का पाक महीना से 70 दिनों के बाद जिलहिज्जा महीने की 10वी तारीख को बकरीद (ईद ऊल अजहा) का त्योहार मनाया जाता है। बकरीद पर्व को ईद ऊल अजहा भी कहा जाता है, बकरीद (ईद ऊल अजहा) के दिन नमाज अदा की जाती है नमाज के बाद एक खास दुआ भी होती है जिससे पूरे विश्व के लिए शांति और अमन की कामना की जाती है बकरीद (ईद ऊल अजहा) की नमाज पढ़ने के बाद लोग एक दूसरे से गले लगाकर बकरीद (ईद ऊल अजहा) के त्योहार की बधाई देते हैं।नमाज के बाद घर जाकर मीठी सेवई खाया जाता है।*इस्लाम में कुर्बानी (ईद ऊल अजहा) का महत्त्व*इस्लाम में कुर्बानी का बहुत बड़ा महत्त्व बताया गया है कुरान के अनुसार कहा जाता है कि एक बार अल्लाह ने हजरत इब्राहिम की परीक्षा लेनी चाही। अल्लाह ने हजरत इब्राहिम को हुक्म दिया की वह अपनी सबसे प्यारी चीज को उन्हें कुर्बानी कर दें, हजरत इब्राहिम को उनके बेटे हजरत इस्माईल सबसे ज्यादा प्यारे थे, अल्लाह के हुक्म के बाद हजरत इब्राहिम ने ये बात अपने बेटे हजरत इस्माईल को बताया। बता दें हजरत इब्राहिम 80 साल की उम्र में ओलाद नसीब हुई थी।जिसके बाद उनके लिए अपने बेटे को कुर्बानी देना बहुत मुश्किल काम था, लेकिन हजरत इब्राहिम ने अल्लाह के हुक्म और बेटे की मुहब्बत में से अल्लाह के हुक्म को चुनते हुए बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। हजरत इब्राहिम ने अल्लाह का नाम लेते हुए अपने बेटे के गले पर छुरी चला दी, लेकिन जब हजरत इब्राहिम ने अपनी आंख खोली तो देखा कि उनका बेटा बगल में जिंदा खड़ा है और उसकी जगह बकरे जैसी शक्ल का जानवर कटा हुआ लेटा हुआ है जिसके बाद अल्लाह की राह में कुर्बानी देने की शुरुआत हुई।*क्यों दी जाती है कुर्बानी(ईद ऊल अजहा)*ईद उल अजहा हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है इस दिन इस्लाम धर्म के लोग किसी जानवर की कुर्बानी देते हैं इस्लाम में सिर्फ हल के तरीके से कमाए हुए पैसों से ही कुर्बानी जायज मानी जाती है कुर्बानी का गोश्त अकेले अपने परिवार के लिए नहीं रख सकता है इसके तीन हिस्से किए जाते हैं पहला हिस्सा गरीबों के लिए होता है दूसरा हिस्सा दोस्त और रिश्तेदारों के लिए होता है और तीसरा हिस्सा अपने घर पर रखने के लिए होता है।*कितने लोग मिलकर दे सकते हैं कुर्बानी*कुर्बानी के लिए जानवरों को चुनते समय अलग-अलग हिस्से हैं जहां बड़े जानवर भैंस पर सात हिस्से होते हैं तो वहीं बकरे जैसे छोटे जानवरों पर महज एक हिस्सा होता है मतलब साफ है कि अगर कोई शख्स भैंस या ऊंट को कुर्बानी करता है तो उसमें सात लोगों को शामिल किया जा सकता है वही बकरे की करता है तो वह सिर्फ एक शख्स के नाम पर होता है।


