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बढ़ते वाहन, सिकुड़ती सड़कें: शहरों की यातायात समस्या की अनदेखी तस्वीर

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जागता झारखंड सम्पादक डॉक्टर कृपा शंकर अवस्थी: आज के समय में हमारे शहरों की सबसे बड़ी समस्याओं में एक है बेतहाशा बढ़ती गाड़ियों की संख्या और इसके चलते बिगड़ता यातायात प्रबंधन। बैंकों से आसान ऋण और शो-रूम द्वारा दी जाने वाली छूटों ने आम जनता को निजी वाहन खरीदने के लिए प्रेरित किया है। सरकार को इससे भरपूर टैक्स तो मिलता है, परंतु इससे उत्पन्न हो रही समस्याओं की अनदेखी नहीं की जा सकती। शहरों में अब जैसे कोई पैदल चलना ही नहीं चाहता। कई वाहन चालक अपनी गाड़ियाँ स्टार्ट हालत में छोड़, सड़क किनारे खरीदारी करते नजर आते हैं। ना तो पार्किंग की चिंता और ना ही ट्रैफिक की फिक्र। परिणामस्वरूप जाम की समस्या विकराल रूप लेती जा रही है। सड़कों पर जगह-जगह लगने वाली ठेले, रेहड़ी और सब्जी की अस्थाई दुकानों ने पैदल चलने वालों के लिए रास्ते ही खत्म कर दिए हैं। इस अराजकता के बीच स्थानीय प्रशासन की निष्क्रियता हादसों की संख्या में बढ़ोतरी का मुख्य कारण बनती जा रही है। जब हादसे होते हैं, तब जनता सड़कों पर उतर आती है, रास्ते जाम कर देती है और प्रशासन से मुआवजे की मांग करती है। वहीं, जब ट्रैफिक पुलिस रेहड़ी वालों को हटाती है तो कुछ तथाकथित समाजसेवी इसे गरीबों पर अत्याचार बताकर प्रशासन की कार्रवाई को बदनाम करते हैं। शहरों का बुनियादी ढांचा भविष्य की जनसंख्या को ध्यान में रखकर नहीं बनाया गया है। मेट्रो शहरों को छोड़ दें तो सार्वजनिक परिवहन की सुविधा लगभग नदारद है। ऑटो और निजी वाहनों की भरमार, ट्रैफिक सिग्नल की खराब व्यवस्था, सीसीटीवी की अनुपस्थिति और युवाओं का तेज गति से वाहन चलाना इन सबने मिलकर यातायात को एक संकट में बदल दिया है।सरकार और प्रशासन को चाहिए कि—हर प्रमुख चौराहे पर ट्रैफिक सिग्नल और सीसीटीवी लगाए जाएं।स्पीड मापक यंत्रों की मदद से वाहनों की गति पर नियंत्रण किया जाए।उचित पार्किंग व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।फुटपाथों से अतिक्रमण हटाकर रेहड़ी-पटरी वालों के लिए वैकल्पिक स्थान उपलब्ध कराए जाएं। जहां सड़कें चौड़ी हों, वहाँ स्थाई दुकानों की व्यवस्था कर कुछ लोगों को रोजगार भी दिया जाए। महापुरुषों की मूर्तियों के चारों ओर की जगह का भी सुनियोजित उपयोग कर विक्रेताओं को सम्मानजनक स्थान दिया जा सकता है, बशर्ते इससे उनके सम्मान को ठेस न पहुंचे। इस समस्या का समाधान तभी संभव है जब प्रशासनिक इच्छाशक्ति, जनभागीदारी और सुव्यवस्थित योजना, तीनों मिलकर काम करें। यातायात की यह अराजकता सिर्फ समस्या नहीं, एक गंभीर चेतावनी है जिस पर अब भी ध्यान न दिया गया तो भविष्य और भी कठिन हो सकता है।

Jagta Jharkhand
Author: Jagta Jharkhand

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