जागता झारखंड सम्पादक डॉ कृपा शंकर अवस्थी पिछले 8 अप्रैल 2025 से अंगिभूत महावि इंटरकर्मी संघ का धरना, प्रदर्शन राजभवन रांची के सामने जारी है, अबतक उन सबों ने माननीय राज्यपाल से लेकर माननीय मुख्यमंत्री और यहाँ तक़ कि सचिव, अध्यक्ष झारखण्ड राज्य इंटर कॉसिल तक़ को कइबार आवेदन, ज्ञापन तक़ लगातार देना जारी रखा है, फिर भी पुरे महीने बीत जाने के बाद भी किसी माननीय ने उनकी फरियाद सुनने का समय नहीँ निकाला. स्तिथि यहाँ तक़ आ पहूंची है कि कई संघ के पदेन सदस्य राजभवन के सामने अपनी आहुति दिए जाने की मुखर घोषणा तक़ बार बार किये जा रहे हैं. भीषण चिलचिलती धुप, गर्मी में इंटरकर्मी संघ के लोग निरन्तर धरने पर सुबह से संध्या तक़ डटे रहते हैं, उनसबों ने साफ बताया वे पिछले दस पंद्रह वर्षों से अपर्याप्त मानदेय पर पूरी ईमानदारी से अपनी सेवाएं राज्य के अंगिभूत महाविद्यालयों में दे रहे हैं, कई अंगिभूत महावि के प्रभारी उन्हें जानबूझकर कभी न्यूनतक मानदेय भी वर्षों से नहीँ दे रहे, उनकी मंसा इंटर की पढ़ाई ऐसे महावि बंद करने की है, वे इंटरकर्मियों को मानदेय इसलिए नहीँ देते कि सभी ऐसे कर्मी स्वतः अपनी सेवाएं छोड़ घर बैठ जाएं. क्या कोई विश्वास करेगा कि वर्ष 2019 अक्टूबर से लगातार आज कि तिथि तक़ दर्जन से ज्यादा ऐसे इंटरकर्मियों को एक पैसे का भी मानदेय भुगतान नहीँ किया गया. पाकुड़ जिले के एकमात्र अंगिभुत महावि में तो विगत 3 मई को एक निहायत ही दीन चतुर्थ श्रेणी इंटरकर्मी शुभाशीष यादव ने दम तोड़ दिया, उसे याचना करने पर भी वर्षों न्यूनतम मानदेय का भी भुगतान नहीँ मिला, और इलाज के अभाव में उसकी असमय मौत हो गई. कितने गैर संवेदनहीन महावि प्रभारी कि उक्त इंटरकर्मी के लिए महावि में कोई शोक तक़ नहीँ मनाया गया, श्रद्धांजलि के दो शब्द भी उस मृतक सेवक के प्रति व्यक्त नहीँ किये गए.इसकी सुचना जैसे ही आंदोलनरत इंटरॉकर्मी संघ के सदस्यों तथा अशोक उरांव, दिलीप मरांडी, रेखा स्नेहा कुजूर, संदीप रजवार, महेश माईथा, निशिकांत यादव बिसाम्भर कु राहुल, नजरें आलम, अविनाश कुमार, सुजीत कुमार आदि, उनसभी धरणर्थियों ने ऐसे ईमानदार, कर्मठ कर्मी को महज 24 घण्टे के अंदर श्रद्धांजलि धरनास्थल पर ही वजाप्ता उसकी तस्वीर लगाकर दी, भावुक कर देनेवाले संघ नेताओं के बयान और वर्णन सुन किसकी आँखें हैं जिसकी नम न हुईं, फूलों से दिवंगत शुभाशीष यादव की तस्वीर ढंक गई, आँशुओं से तर फूलों से शुभाशीष की आँखें जैसे रोने लगी हों, वर्षो की अस्हय वेदना में शुभाशीष के होंठो पर अंशुओं भरी मुस्कान जैसे तैर आई हो. कोई बताए, अपने पुरे सामर्थ्य, ईमानदार बिना नागा सेवा देने के बावजूद भी शुभाशीष यादव जैसे इंटर सेवक से चूक क्या हुई, क्यों वर्षों तक़ उनजैसे कर्मियों को न्यूनतम मानदेय भी वंचित रखा गया, या अब भी बंचित रखा जा रहा है, कई माननीय उच्च न्यायालय रांची में भी गुहार लगा चुके हैं, लेकिन माननीय न्यायालय ने इंटर कर्मियों के लिए बनाए गए झारखण्ड इंटर शिक्षा ट्रिब्यूनल को मामला सौंप अपनी जिम्मेदारी जेइटी पर टाल दी, उक्त ट्रिब्यूनल ने किसी अंगिभूत कॉलेज से इंटरकर्मियों की लिस्ट, मानदेय भुगतान का व्योरा आजतक नहीँ माँगा, हाँ पीड़ित कर्मियों के नियुक्ति पत्र की मांग कर शांत है. शायद उन्हें बताने में पीड़ितों के अधिवक्तागण वास्तविक्ता बताने में चूक गए कि कई शातिर प्रभारी या प्राचार्य नियुक्ति पत्र इंटरकर्मियों को दिखाकर नियुक्ति पत्र देना भूल गए, मगर इंटर फंड से कूछ कुछ मानदेय पिछले दस पंद्रह वर्षों तक़ देते भी रहे, महज एक दो कोलेजों को छोड़कर जो 2019 से न्यूनतम इंटर कौंसिल स्वीकृत मानदेय जानबूझकर नहीँ देते रहे. विचारणीय पहलू यह भी है कि अंगिभूत महावि में नियमित शिक्षेत्तर कर्मी गिनती के रह गए हैं, अधिकांश ऐसे कर्मी अवकाश ग्रहम कर चुके हैं, ऐसे में 8वीं, 9वीं, मैट्रिक, इंटर से लेकर विवि और यहाँ तक़ कि सरकार द्वारा संचालित प्रतियोगिता परीक्षाओं का सारा दायित्व इन्हीं इंटरकर्मियों पर वर्षों से रहता आया है, यदि in इंएरकर्मियों की नियुक्ति गैर वैधानिक थी तो झारखण्ड राज्य इंटर कौंसिल ने इनकी नियुक्तियाँ वर्षों तक़ रद्द क्यों नहीँ की, आखिर के के एम महाविद्यालय के अत्यंत बौने कदवाले किशोर हरिजन को महज डेढ़ दो सालों की सेवा के बाद जैसे हटा दिया, उसने खुद पाकुड़ नगरपरिषद में स्थाई तौर पर अपनी नियुक्ति करा पाने में सफलता जैसे पाई, सारे ऐसे अनियमित इंटर कर्मियों को तत्काल सेवा से हटा क्यों नहीँ दिया, जैसे इन कई कर्मियों ज़े प्रतिवर्ष मानदेय देने के बदले प्रभारी व प्राचार्य धन उगाही करना नहीँ भूले, नए नियुक्त कर्मियों से भी धन उगाही करते रहते, इन्हे हटाने के बाद बदनामी का इतना डर कि इन्हें लगातार घर के निजी सेवक से लेकर कॉलेज सेवक बनाए सेवाएं लेते रह गए. झारखण्ड सरकार और इंटर कौंसिल को चाहिए कि अंगिभूत कोलेजों के इंटर फण्ड कि नियमित ऑडिट कराए, तब शायद यह सच्चाई भी सामने आ जाएगी कि विवि ने अनुबंध पर सुरक्षा प्रहरियों को नियुक्त किया परन्तु उनका मानदेय महावि इंटर फण्ड से ही कराया गया, सिकमु विवि ने केकेएम, पाकुड़ के इंटर फण्ड से वर्ष 2013-14 में 15 लाख रु लेकर आजतक वापस नहीँ किये, चलत फिरते टहलते रखे गए खानसामा, जिसे सर्वोच्च न्यायालय ने श्रम न्यायालयएं मामला दायर करने का अधिकार तक़ नहीँ बताया, उसे इस कॉलेज के एक प्रभारी ने इंटर फण्ड से बिना कौंसिल से अनुमति लिए सारा बकाया प्रदान कैसे कर दिया, उसके मामले में यह सच्चाई माननीय श्रम न्यायालय, देवघर से क्यों छुपाई कि ऐसे काम चलाऊ, गैरजिम्मेदार कर्मी को पूर्व में एक दो नहीँ दो प्रभारी और एक प्राचार्य ने भी सेवा से हटा रखा था. इंटर फण्ड की नियमित और सघन जाँच राज्य के सभी अंगिभूत, गैर अंगिभूत इंटर कॉलेजों में अवश्य की जानी चाहिए, पुरे राज्य से आमदनी के नायाब तरीके पर भी सवालिया ऊँगली उठनी चाहिए, आखिर प्रतिवर्ष 7वीं से लेकर बारहवीं तक़ की परीक्षाओं का जिस एक इंटर, मैट्रिक कौंसिल पर जिम्मेदारी रख छोडी गई गई है, उसकी बेशुमार आमदनी किन मदों में व्यय होती है, कहीं भी इंटर शिक्षक या कर्मियों को नियमित विवि कर्मियों या शिक्षकों की तरह इचित मानदेय क्यों नहीँ दिए जाते, ऐसे कॉलेजों के आधुनिक विकास क्यों नहीँ किये जाते, वर्षों तक़ रंगाई, पुताई, भवन निर्माण, भविष्य में बढ़ती छत्र छात्राओं की अनुमानित संख्या के हिसाब से क्यों नहीँ की जा रही है, नये नये, ऐसे इंटर कॉलेज जिले के मुख्यालयों से बाहर कसबों, दूर दराज इलाकों में क्यों नहीँ खोले जा रहे. पढ़े लिखें,ट्रेंड शिक्षकों और कर्मचारियों को न्यूनतम वेतन मानदेय पर वर्षों क्यों बनाए रखा गया है, उन्हें प्रोन्नति के अवसर विगत दस, पंद्रह से क्यों नहीँ दिए जा रहे, और सबसे ज्यादा चौकाने वाली सच्चाई यह कि इतने बड़े राज्य में इंटर मैट्रिक के मात्र एक केंद्र, प्रत्येक प्रमणडलों में इनकी शाखाएं अबतक क्यों नहीँ. सत्कार इंटरकर्मियों कि समस्याओं पर अविलम्ब ध्यान दे, उनकी मांगों पर विचार कर निर्णय ले, उनकी सेवाओं को नियमित करे, कहीं ऐसा न हो कि आंदोलनरत कोई कर्मी सरकार कि उपेक्षाओं से उबकर कोई जघन्य कदम न उठा ले, उनके संघ के कूछ नेताओं की ऊब के स्वर चिंता देनेवाले हैं, एक शुभाशीष का ह्रश्र और लगतार महीने से ज्यादा धरने पर अडिग कर्मियों किसी सरकार या जिम्मेदार लोगों के लिए अशोभनीय और निंदनीय है, संवेदन शून्यता समाज के हित में कतई नहीँ है।
