जुल्म के खिलाफ डटे रहने की सीख है कर्बला: वरिष्ठ समाजसेवी मुन्तजीर अहमद रजा
मुजफ्फर हुसैन , जागता झारखण्ड , ब्यूरो राँची : वरिष्ठ समाजसेवी एवं ओरमांझी पूर्व उप प्रमुख मुन्तजीर अहमद रजा ने कहा कि इस्लामी हिजरी कैलेंडर की शुरुआत जिस पवित्र महीने से होती है, वह है मुहर्रमुल हराम — एक मुकद्दस, बाबरकत और फजीलत से भरपूर महीना। इस महीने की दसवीं तारीख को यौमे आशूरा कहा जाता है, जिसे पूरी दुनिया के मुसलमान सब्र, कुर्बानी और इंसानियत के सबसे बड़े पैग़ाम के तौर पर याद करते हैं।उन्होंने कहा कि कर्बला की सरजमीन पर हजरत इमाम हुसैन (रजि) और उनके जाँबाज साथियों ने जुल्म और अन्याय के आगे सिर झुकाने के बजाय अल्लाह के बताए हक और इंसाफ के रास्ते पर चलते हुए अपनी जानों की कुर्बानी दी। यही वजह है कि यौमे आशूरा सिर्फ एक तारीख नहीं है, बल्कि यह हमें यह सीख देता है कि हालात चाहे कितने भी कठिन क्यों न हों, हक और सच्चाई के रास्ते पर डटे रहना चाहिए। मुन्तजीर अहमद रजा ने कहा कि मुहर्रम का महीना मुसलमानों को रोजा, सदका और सब्र का अहम पैगाम देता है। इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार 9वीं और 10वीं या 10वीं और 11वीं मुहर्रम के रोज़े रखे जाते हैं। लोग इस अवसर पर रोजा रखकर, जरूरतमंदों को खाना खिलाकर और नेक अमल करके अपने दिलों को पाक करते हैं। कर्बला की कुर्बानी इस्लाम में अमन, भाईचारा और इंसानियत के उसूलों को मजबूती से कायम रखने की मिसाल पेश करती है। उन्होंने नौजवानों से विशेष अपील करते हुए कहा कि वे मुहर्रम की असली अहमियत को समझें और इसे सिर्फ मातम या रस्म-अदायगी तक सीमित न रखें। मुहर्रम का असल मक़सद सब्र, कुर्बानी और इंसाफ के उसूलों को अपनी जिंदगी में उतारना और समाज में इंसाफ व अमन-चैन को बरकरार रखना है। मुन्तजीर अहमद रजा ने स्थानीय प्रशासन और समस्त मुस्लिम समुदाय से भी अपील की कि मुहर्रमुल हराम के इस मुबारक महीने में शांति, भाईचारा और गंगा-जमनी तहज़ीब को हर हाल में बरकरार रखा जाए। किसी भी तरह की अफवाहों पर ध्यान न दिया जाए और मोहल्लों व गांवों में अमन का पैगाम फैलाया जाए।
