मुजफ्फर हुसैन, जागता झारखण्ड, ब्यूरो राँची– केंद्र सरकार द्वारा वक्फ संशोधन बिल 2024 को संसद में पारित कर मुसलमानों के धार्मिक और सामाजिक अधिकारों पर सीधा प्रहार किया गया है। इस बिल के खिलाफ पूरे देश में आक्रोश और विरोध की लहर दौड़ रही है। मैं, तनवीर अहमद, एक सामाजिक कार्यकर्ता, इस विधेयक की कड़ी निंदा करता हूं, क्योंकि यह मुसलमानों के धार्मिक, सामाजिक और शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्तता पर सीधा हमला है।वक्फ बोर्ड का गठन गरीबों, यतीमों, विधवाओं और जरूरतमंदों की मदद के लिए किया गया था। यह मुसलमानों की धार्मिक और शैक्षणिक गतिविधियों का केंद्र है। लेकिन वर्तमान सरकार इस संस्था को कमजोर कर, मुसलमानों को हाशिए पर धकेलने की रणनीति पर काम कर रही है। यह भारत के संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद 25-30) का सीधा उल्लंघन है। सबसे दुखद पहलू यह है कि एनडीए के सहयोगी दल – नीतीश कुमार (जेडीयू), चंद्रबाबू नायडू (टीडीपी), चिराग पासवान (एलजेपी), जयंत चौधरी (आरएलडी), अजित पवार (एनसीपी), एचडी देवगौड़ा (जेडीएस) और अन्य – ने भी इस बिल का समर्थन किया। यह उन लाखों मुसलमानों के साथ विश्वासघात है, जिन्होंने इन दलों को अपना वोट दिया। इन नेताओं ने इस बिल पर या तो चुप्पी साध ली या फिर सरकार के पक्ष में खड़े हो गए, जिससे यह स्पष्ट हो गया कि वे मुस्लिम समाज के हितों की रक्षा के प्रति गंभीर नहीं हैं।संशोधन की आपत्तिजनक बातें1. वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्य: यह प्रस्ताव वक्फ संपत्तियों और धार्मिक मामलों में सरकार के हस्तक्षेप का रास्ता खोलेगा।2. राज्य सरकारों की अनदेखी: यह संशोधन राज्य सरकारों की स्वायत्तता को समाप्त कर केंद्र को वक्फ संपत्तियों पर सीधा नियंत्रण देगा।3. वक्फ संपत्तियों पर निगरानी के नाम पर हस्तक्षेप: सरकार अब मस्जिदों, मदरसों, दरगाहों, कब्रिस्तानों, और अन्य वक्फ संपत्तियों की निगरानी और नियंत्रण के बहाने हस्तक्षेप कर सकेगी।4. संवैधानिक मूल्यों पर खतरा: यह कानून केवल मुस्लिम समुदाय के लिए नहीं, बल्कि भारत के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक ढांचे के लिए भी खतरा है।पूरे देश के लिए खतरे की घंटीयह विधेयक सिर्फ मुसलमानों तक सीमित नहीं है। यह पूरे भारतीय समाज में समानता, धर्मनिरपेक्षता और स्वतंत्रता के मूल्यों पर हमला करता है। अगर आज मुस्लिम समुदाय चुप रहा, तो भविष्य में अन्य धार्मिक और सामाजिक संस्थाओं पर भी सरकार का हस्तक्षेप बढ़ सकता है।हमारी माँगें और अपील1. झारखंड सरकार को चाहिए कि वह विशेष सत्र बुलाकर इस बिल को राज्य में लागू न करने का फैसला करे।2. देशभर के सामाजिक संगठनों, मुस्लिम धार्मिक नेताओं और विपक्षी पार्टियों से अपील है कि वे इस बिल के खिलाफ लोकतांत्रिक और कानूनी लड़ाई लड़ें।3. हमारी अगली पीढ़ी हमें माफ नहीं करेगी अगर हमने आज चुप्पी साध ली। हमें अपने संविधान और धार्मिक अधिकारों की रक्षा के लिए खड़ा होना होगा।4. हम वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए हर कानूनी और लोकतांत्रिक मंच पर संघर्ष जारी रखेंगे।यह सिर्फ एक समुदाय की लड़ाई नहीं, बल्कि संविधान और न्याय की रक्षा की लड़ाई है।
