जागता झारखंड साहिबगंज संवाददाता साहिबगंज : रविवार को नागरिक परिषद के तत्वाधान में ” वन नेशन वन इलेक्शन” विषय पर संगोष्ठी का आयोजन जिला परिषद सभागार उत्सव बैंक्वेट हॉल साहिबगंज में किया गया। इस संगोष्ठी का शुभारंभ इस कार्यक्रम में आए मुख्य रूप से जैक के पूर्व अध्यक्ष डॉ अरविंद प्रसाद सिंह, राजमहल विधानसभा के निवर्तमान विधायक अनन्त कुमार ओझा ने मां भारती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित करके किया। मंच पर मुख्य रूप से चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष राजेश अग्रवाल, भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष रामदरश यादव उपस्थित थे।इस कार्यकम में मुख्य रूप से आए हुए जैक के पूर्व अध्यक्ष डॉ अरविंद प्रसाद सिंह ने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब हैं कि एक देश एक चुनाव मतलब देश में लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ होना। बार-बार होने वाले चुनाव देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा बन चुका हैं। चुनावों में पैसा खर्च होता है, बार बार आचार संहिता लगने के कारण विकास कार्य ठप हो जाते हैं। नेता और नौकरशाही चुनावी तैयारियों में व्यस्त हो जाते हैं। जिससे जनकल्याण योजनाएं रुक जाती हैं। बार-बार चुनाव होने के वजह से जनता का उत्साह भी अब धीरे धीरे कम हो रहा है। अब समय है कि संविधान में संशोधन कर 5 साल में एक बार लोकसभा और विधानसभा चुनाव हों ताकि देश की प्रगति बाधित न हो। वन नेशन वन इलेक्शन से देश में बहुत तेजी से विकास होगा। इससे चुनाव में होने वाले खर्च में भी कमी आएगी।
साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन के वजह से एक और जहां भारत में लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ होना शुरू हो जाएगा। इसके साथ ही स्थानीय निकायों के चुनाव भी एक ही दिन या एक तय समय सीमा में कराए जाएं। इसलिए तो पीएम मोदी लंबे समय से वन नेशन वन इलेक्शन की वकालत करते आए हैं उन्होंने कहा था कि चुनाव सिर्फ तीन या चार महीने के लिए होने चाहिए, पूरे 5 साल राजनीति नहीं होनी चाहिए। साथ ही चुनावों में खर्च कम हो जाएगा इससे प्रशासनिक मशीनरी पर बोझ भी नहीं बढ़ेगा।
राजमहल विधानसभा क्षेत्र के निवर्तमान विधायक श्री अनंत कुमार ओझा ने कहा कि समिति ने अपने रिपोर्ट में संविधान संशोधन विधेयक में नया अनुच्छेद 82 जोड़ने तथा अनुच्छेद 83, अनुच्छेद 172 और 327 में संशोधन के साथ यह प्रस्ताव उन्होंने दिया था और यह नहीं कि केवल समिति केवल कुछ लोगों के द्वारा जो विचार आया। इस समिति के द्वारा समाज के अनेक क्षेत्रों में जो अग्रणी भूमिका निभाई। इसमें कुल 62 राजनीतिक दलों ने उनके माध्यम से इस एक राष्ट्र एक चुनाव कराने के विषय को लेकर के उनसे सुझाव माना गया था लेकिन इसमें से 47 दलों ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी थी और उसे 47 दलों में से 32 दलों ने एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में अपना विचार आदरणीय रामनाथ कोविंद जी को सुपुर्द करने का काम किया था। 15 दलों ने इस पर आपत्ति भी किया था। इसके साथ ही साथ भारत के चार पूर्व मुख्य न्यायाधीश उन्होंने भी अपनी राय समिति के सामने उन्होंने उसके समर्थन करते हुए कहा था और उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया था और समर्थन करते हुए उन्होंने राय दी थी यह जो एक देश एक चुनाव का जो विषय है यह विशेष संविधान की मूल भावना के विपरीत नहीं है ऐसा अवकाश प्राप्त जो मुख्य न्यायाधीश थे। चार मुख्य चुनाव आयुक्त ने भी इसके पक्ष में अपनी राय दी थी इस प्रकार राज्यों के जो मुख्य चुनाव आयुक्त रहे हैं बार काउंसिल संगठन के अधिकारियों ने भी अपना इसके बारे में प्रतिवेदन समर्पित करने का काम किया था। इस समिति के मुख्य आदरणीय रामनाथ कोविंद जी की अध्यक्षता में जो स्थापित हुई थी उसे समिति ने जनता से भी सुझाव मांगा था और उसे सुझाव के परिपेक्ष में 83% लोगों ने पक्ष में निर्णय दिया यानी कुल 13396 लोगों ने एक साथ एक देश एक चुनाव के समर्थन में दिया जबकि केवल 17% यानी 2276 लोगों ने इस पर आपत्ति किया कि यह ठीक नहीं होगा यह राज्यों के साथ संघीय ढांचे के विपरीत होगा और इसी प्रकार से आदरणीय रामनाथ कोविंद जी ने और समिति ने अपने सुझाव के क्रम में इस बात को जरूर कहा कि संविधान में प्रस्तावित अनुच्छेद 82ए को जोड़ने के माध्यम से किया गया। अनुच्छेद 82ए के अनुसार राष्ट्रपति संशोधन को केवल 19वीं लोकसभा के पहले सत्र के दौरान अर्थात 2019 के आम चुनाव के बाद ही लागू कर सकते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन भारत के लिए यह कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है। देश में आजादी के बाद से 1967 तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे। 1952, 1957, 1962 और 1967 में दोनों चुनाव एक साथ हुए थे, लेकिन राज्यों के पुनर्गठन और अन्य कारणों से चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे। अगर भारत देश में भी वन नेशन वन इलेक्शन के तर्ज पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ होने लग जाए तो इससे जनता को बार-बार के चुनाव से मुक्ति मिलेगी और इससे इस देश में युवा वर्ग में चुनाव को लेकर अपने मत का प्रयोग करने को लेकर एक अलग उत्साह का भी संचार होगा। एक देश एक चुनाव से चुनावी खर्च भी बचेगा और वोटिंग परसेंट में भी इजाफा होगा। हर बार चुनाव कराने पर जो करोड़ों रुपये खर्च होते हैं वो खर्च कम हो जाएगा। इसके अलावा देश में राजनीतिक स्थिरता लाने में ये अहम रोल निभा सकता है। इलेक्शन की वजह से बार बार नीतियों में बदलाव की चुनौती कम होगी। सरकारें बार-बार चुनावी मोड़ में जाने की बजाय विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित कर सकेंगी। प्रशासन को भी इसका फायदा मिलेगा और गवर्नेंस पर जोर बढ़ेगा। अधिकारियों का समय और एनर्जी बचेगी। इसका बड़ा आर्थिक फायदा भी है। सरकारी खजाने पर बोझ कम होगा और आर्थिक विकास में तेजी आएगी। अलग-अलग समय पर चुनाव होने से कई तरह की परेशानी होती रही है, जो हम लोग भी महसूस करते रहे हैं। एक तो ख़र्च बढ़ता ही है दूसरा ये कि विकास कार्य भी इससे लगातार प्रभावित होता है। अब कहीं चुनाव हो रहा है तो वहाँ मॉडल कोड लग गया, मॉडल कोड के कारण फिर वहाँ विकास के काम रुक जाते हैं।
साथ ही उन्होंने कहा कि नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश में प्रत्येक वर्ष कम-से-कम एक चुनाव होता है, इन चुनावों के चलते विभिन्न प्रकार के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नुकसान होते हैं। चुनाव की आर्थिक लागत अधिक है, इसके अलावा अन्य वित्तीय लागतें भी हैं। चुनाव के दौरान सरकारी तंत्र चुनाव ड्यूटी और संबंधित कार्यों के कारण अपने नियमित कर्तव्यों का पालन नहीं कर पाता है। चुनावी बजट में चुनाव के दौरान उपयोग किये जाने वाले इन लाखों मानव-घंटे की लागत की गणना नहीं की जाती है। नीतिगत पक्षाघात का सामना करना पड़ता है क्योंकि आदर्श आचार संहिता (एम सी सी) के कारण सरकार किसी नई महत्त्वपूर्ण नीति की घोषणा या उसका क्रियान्वयन नहीं कर सकती है। प्रशासनिक लागतें यथा सुरक्षा बलों को तैनात करने तथा बार-बार उनके परिवहन पर भी भारी और दृश्यमान लागत आती है।संवेदनशील क्षेत्रों से इन बलों को हटाने और देश में जगह-जगह बार-बार तैनाती के कारण होने वाली थकान तथा बीमारियों के संदर्भ में राष्ट्र को एक बड़ी अदृश्य लागत का भुगतान करना पड़ता है। अगर भारत देश में भी एक देश एक चुनाव होना शुरू हो जाता है तो इससे देश में विकास कार्यों में भी और तेजी आएगी और भारत देश उन्नति के क्षेत्र में अपना मार्ग प्रशस्त करेगी। वन नेशन वन इलेक्शन से देश में वित्तीय बचत होगी, शासन में निरंतरता आएगी, प्रशासनिक सुविधा होगी, जनता का ध्यान विकास के मुद्दों पर होगा, राजनीतिक स्थिरता आएगी।
इस कार्यकम की अध्यक्षता एवं मंच संचालन सी आई टी के सेवानिवृत विजय कुमार ने किया और धन्यवाद ज्ञापन सुनील सिंह ने किया। इस कार्यकम में मुख्य रूप से रामानंद साह, धर्मेंद्र कुमार,कमल महावर, सुशील भरतिया, उपेन्द्र राय, नरेश ठाकुर, जगनमय मिश्रा, भिखारी साह, प्रदीप साह, विवेकानंद तिवारी, प्रो सुबोध झा, प्रमोद पांडेय, आकाश पाण्डेय, सुनील सिंह, जयप्रकाश सिन्हा, बचन कुमार पाठक,दिनेश पांडेय एवं शहर के गणमान्य लोग उपस्थित थे।वही कार्यक्रम समाप्ति के पूर्व विगत 22 अप्रैल 1925 को जम्मू कश्मीर के पहलगाम आंतकवादी घटनाओं में मारे गए परिवार के प्रति 2 मिनट का मौन रखा गया।

