कैसे सीखूं कौन सिखाए, लक्ष्य ये कैसा होगा?
विचलित मन के सागर में, क्या कोई नियंत्रण होगा?
स्वयं को जान अनन्य ना बन, कारण सचमुच कुछ होगा।
समय से अब तू समय को चुरा, तब ही कुछ संभव होगा।
छोड़ तू अब आलस का मार्ग, अब अनुशासित बनना ही होगा।
आडंबर का त्याग कर, यथार्थता से परिचय करना ही होगा।
मिथ्या अभिमान को छोड़ तू अब, सत्य का मार्ग चुनना ही होगा।
यदि जीवन में कुछ प्राप्त है करना, तो परिवर्तन स्वयं से लाना ही होगा।
सहज नहीं यूं मार्ग सफलता का तय करना, कच्चे पक्के मार्गों पर चलना सीखना ही होगा।
पाषाण हो या कंटक मार्ग में, बिना थके बस चलते रहना ही होगा।
प्रत्येक क्षण ना कोई बनेगा सहारा, स्वयं ही स्वयं को संभालना सीखना ही होगा।
स्वयं से कहो स्वयं हूं मैं, स्वयं में ही सब सीखना होगा।
लक्ष्य भी उन्नत होगा तुम्हारा, बस तुम्हें सीखते रहना ही होगा।
प्रकृति के परिवर्तन में, स्वयं में ही सब सीखना होगा।
स्वयं से कहो स्वयं है सीखना, लक्ष्य तुम्हारा उन्नत होगा।।
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