सौरभ भगत जागता झारखंड संवाददाता।
अमडा़पाडा़। दुनिया में इंसान हो या हैवान पेट में जब भूख लगती है बड़ी तकलीफ देती है। पेट की आग हर काम को करने में विवश कर देती है। कहते हैं हमारे बच्चे ही हमारे देश का भविष्य है परंतु इन्हीं में से कुछ बच्चे अपना भविष्यकचरों में तलाश कर रहे हैं। अमरापाड़ा प्रखंड क्षेत्र में बाहर से आकर कुछ बच्चे कचड़ा में ढूंढ रहे हैं अपना भविष्य,जब पूरा देश शुक्रवार को बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की 132 वीं जयंती मना रहा था तो यह बच्चे कचरे में अपना भविष्य तलाश रहे थे। जब हमने उन बच्चों से उनका नाम पूछा तो वह नाम बताने से इंकार कर दिए। फिर हमने उन लोगों से पूछा कि तुम लोग पढ़ाई करते हो कि नहीं तो उन लोगों ने बताया नहीं पढ़ते हैं। फिर हमने उन लोगों का घर पूछा तो उन्होंने पाकुड़ के हरिंडा़गा बताया,आपको बताते चलें कि सरकार ने शिक्षा के प्रति मौलिक अधिकार का दर्जा दिया हैं। वहीं गरीब व असहाय परिवारों को कम से कम दरों में खाद्यान्न सामग्री उपलब्ध कराने को ले खाद्य सुरक्षा अधिनियम को अमलीजामा पहनाया हैं। इतना ही नहीं गरीबों के लिए कल्याणार्थ व सहायतार्थ कई एक योजनाएं भी चलाई है। इसके बावजूद भी गरीबी अबतक दूर नहीं हो पाई हैं। बच्चें आज भी अपना भविष्य कूड़े के ढेर में तलाशते हैं। कुछ ऐसे भी वर्ग के लोग हैं जिनका जीवन कचरे के ढेर में टिका हुआ है। कूड़े की ढेर पर ही वह अपने परिवार का भरण पोषण तथा एक वक्त की रोटी की जुगाड़ में लगा होता है। कूड़े की ढेर पर ही जिंदगी की जंग से जुड़ते और बीमारियों की चुनौती कबूलते,कुछ कचरे में भविष्य ढूंढने वाले बच्चों की जमात आज भी जंग की लड़ाई लड़ रहा है।सुबह होते ही इन बच्चों सूरज की पहली किरण के साथ अपने पीठ पर प्लास्टिक का बोरा लिए एक दूसरा प्रखंड तथा एक दूसरा गांव निकल पढ़ते हैं। इन बच्चों की स्वास्थ्य या सुरक्षा की गारंटी लेनें वाला कोई नहीं है। कूड़ा-कचरा के बीच रहने वालों को आज मानवीय संवेदना से भी परे समझा जाता है। कूड़े में फेंका हुआ प्लास्टिक का वस्तु, कांच का वास्तु, लोहे का वास्तु, किताब आदि चुनने वाले ये बच्चे उपेक्षा के शिकार में है। कूड़े कचरे के बीच से जीविकोपार्जन के लिए कुछ चुनना इनकी पेशा बन गई है। जबकि इन बच्चों की सुरक्षा के प्रति सरकारी महकमा बिल्कुल निश्चित सा है।कूड़े से चुना हुआ सामान को यह बच्चे कबाड़ी वालों के पास जाकर बेच देते हैं। वहीं पैसा से अपने परिवार का भरण पोषण ओर दो वक्त की रोटी जुगाड़ करने में रहते हैं ये बच्चे। आंकड़ों में शिक्षा का अधिकार सब ठीक हीं हैं। जहां तक शिक्षा के अधिकार अधिनियम की बात है तो सरकारी आंकडो़ में सब कुछ ठीक हीं है। ऐसे बच्चे जो कि स्कूल नहीं जाते हैं या फिर कूड़ा कचरा चुनने में अपना भविष्य गुजार देते हैं वह भी सरकारी स्कूलों में नामांकित रहते हैं। उनके नाम पर भी सरकार सभी शिक्षा से जुड़ी योजनाओं का लाभ देती है। उनके नाम पर सरकारी सारी सुविधाएं उठाई जाती हैं। यानी सरकारी शिक्षा का अधिकार अधिनियम सब ठीक ही है।
अपने साथ-साथ अपने परिवार का भरण पोषण तथा दो वक्त की रोटी भी जुगाड़ करते हैं ये बच्चे
सरकार के द्वारा बाल श्रम को अधिनियम द्वारा कानूनी अपराध घोषित किया गया है। पर यहां तो कूड़े के ढेर में भविष्य तलाशने वाले बच्चे को इस अधिनियम से क्या लेना देना। उनकी यह दिनचर्या है कि वह जिंदगी कूड़े के ढेर से कुछ चुनकर और उसे कबाड़ी वाले के पास बेचकर यह बच्चे अपना तो पेट भरते ही हैं। साथ में अपने परिवार का भरण पोषण तथा दो वक्त की रोटी भी घर लेकर जाते हैं। बच्चे आज भी कूड़े के ढेर पर अपना भविष्य तलाशते हैं। समाज में एक ऐसा भी वर्ग के लोग हैं। जिनका जीवन ही कचरे के ढेर पर टिका हुआ है। कूड़ा की ढेर पर ही वह अपनी रोटी की जुगाड़ में लगा होता है। कूड़े की ढेर पर जिंदगी से जूझते और बीमारियों की चुनौती कुछ चुनने वालों की जमात आज भी अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहा है। यह बच्चे अपने आर्थिक स्थिति को मिटाने के लिए अपने बचपन को कूड़ा के ढेर में विखोर देते हैं।आखिर सरकार को कचरे चुनने वाले इन मासूम बच्चों पर नजर क्यों नहीं जाती।
बचन कुमार पाठक, ब्यूरो चीफ जागता झारखंड साहिबगंजसाहिबगंज:झारखंड में चुनाव की घोषणा होते ही विभिन्न… Read More
जागता झारखंड संवाददाता सिमडेगा : छोटानागपुर कल्याण निकेतन ने हाल ही में बरटोली स्कूल में… Read More
जागता झारखंड संवाददाता बजरंग कुमार महतो घाघराअगले महीने होने वाली विधानसभा चुनाव की तैयारी को… Read More
मीडिया कोषांग गुरुवार को जिला निर्वाचन पदाधिकारी श्री मनीष कुमार की अध्यक्षता में स्वीप कार्यक्रम… Read More
पाकुड़ करेगा वोट 20 नवम्बर को वोट डालने जाना है, अपना फर्ज निभाना है विधानसभा… Read More