ओलचिकी के विरुद्ध एसएलसीए ने सालखान मुर्मू और उनके समर्थकों का किया पुतला दहन ।

पाकुड़ । आज दिनांक 02/05/2023 को पाकुड़ जिला के अन्तर्गत महेशपुर प्रखंड के श्रीरामगड़िया पंचायत भवन के सामने ओलचिकी लिपि के विरुद्ध में एसएलसीए (संताली लैंग्वेज एंड कल्चरल एसोसिएशन, दुमका) के अध्यक्ष श्री भूषण किस्कू एवम उनके अन्य सहयोगी सदस्यगणों ने पुतला दहन किया ।

एसएलसीए के अध्यक्ष श्री भूषण किस्कू ने बताया की ओलचिकी लिपि संताली भाषा के अनुरूप नहीं है बल्कि इस लिपि में कई अशुद्धियों के कारण संताली भाषा के शब्दो और वाक्यों के अर्थ का अनर्थ हो गया है । भाषाई आधार पर ओलचिकी संताली भाषा के लिए बिलकुल ही उपयुक्त नहीं हैं।

संताली भाषा के कई भाषा विशेषज्ञ ( Linguistic Experts) और भाषा विद्वानों का कहना है कि ओलचिकी लिपि विकलांग अपंग बच्चे की तरह है जो न सुन सकता है न बोल सकता है ना चल सकता है ना सूंघ सकता है और ना ही स्पर्श की अनुभूति ही कर सकता है ।यह पूर्णरूप से असमर्थ बच्चे के समान है । भाषा विद्वानों का कहना है की ओलचिकी के समर्थक ओलचिकी को मात्र जीवित रखने के लिए वेंटीलेटर में रखने का काम कर रहे है लेकिन निकट भविष्य में ओलचिकी की मृत्यु निश्चित है ।

ओलचिकी लिपि के निर्माणकर्ता रघुनाथ मुर्मू को शायद संताली भाषा के संबंध में ‘ध्वनि विज्ञान’ और ‘अक्षर विज्ञान’ में कोई पंडिताई हासिल नहीं थी बल्कि अज्ञानतावश उन्होंने ओलचिकी के मात्र 30 ही अक्षरों को बना पाए थे । हालाकि ‘ध्वनि विज्ञान’ के अनुसार संताली भाषा लिखने और पढ़ने के लिए 59 अक्षरों का होना अति अनिवार्य होता है । भविष्य में संताली भाषा बोलने वाले पीढियां अशुद्ध ओलचिकी लिपि के कारण संताली भाषा अशुद्ध और विकृत हो जाएगी । अतः एसएलसीए द्वारा झारखंड सरकार से मांग है की संताली भाषा की पढ़ाई लिखाई प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालयों तक देवनागरी लिपि में कराई जाए ना की ओलचिकी लिपि में ।

ओलचिकी लिपि के निर्माणकर्ता रघुनाथ मुर्मू को संताली भाषा को शुद्ध शुद्ध लिखने के लिए कितने स्वर और व्यंजनों की आवश्यकता पड़ती इतना भी ज्ञान उन्हें नही था । अब जो लोग उन्हें ‘पंडित’ के रूप में संबोधित करते फिर रहे है जरा ऐसे लोग यह स्पष्ट करे की उन्हें ‘पंडित’ की उपाधि किस यूनिवर्सिटी ने प्रदान किया था ?

एसएलसीए के अध्यक्ष श्री भूषण किस्कू ने ओलचिकी लिपि को बिना सिर पैर वाला अवैज्ञानिक (Unscientific) और नियमरहित लिपि बताया । उन्होंने यह भी कहा की अगर ओलचिकी लिपि द्वारा संताली भाषा को शिक्षण संस्थानों में पठन पाठन चलता रहा तो आने वाले भविष्य में संताली भाषा की खूबसूरती कुरुपता और विकृतियों में बदल जायेगी । भविष्य में संताली भाषा बोलने वाली पीढियां अशुद्ध लिपि के कारण संताली भाषा की मूलता ही किसी अंधेरे युग में खो जायेगी ।

ओलचिकी लिपि के विरोध में एसएलसीए के अध्यक्ष श्री भूषण किस्कू श्रीरामगड़िया पंचायत के मुखिया फिलिप टुडू , उप-मुखिया रफायल मुर्मू , श्रीरामगड़िया पंचायत समिति के सदस्य श्रीनाथ टुडू , वार्ड सदस्य गरभु मरांडी तथा अन्य ग्रामीण मानिक हेंब्रम , रूपलाल टुडू , जॉस हेंब्रम , जोसेफ टुडू , गुरधा हेंब्रम ,कबीराज बास्की , रॉबिन बास्की , थुड़की सोरेन , मीनू हेंब्रम , जोसेफ हांसदा, टेटे मुर्मू , बोर्सन मुर्मू , गारबेन किस्कू , पॉलिना किस्कू , मार्शल मुर्मू , तालाकुड़ी किस्कू , बाहामइ मुर्मू आदि उपस्थित थे ।

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