Black Gold (कोयला) से परिपूर्ण गांव के लोग पोखरा की गंदी पानी पीने को मजबूर- आलूबेड़ा।झारखंड का एक ऐसा गांव जहां रोजाना सरकार की (BGR mining and infra limited.)कंपनी हजारों ट्रक कोयला निकालती है, लेकिन वहां लोगों के पास ना घर हैं, ना पानी, ना सड़क, ना अच्छा स्कूल, और ना अस्पताल, ना ही रोजगार हैं।झारखंड के पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड के एक स्वर्ण रुपी गांव आलूबेड़ा की यह सच्चाई है और यह तस्वीर आलूबेड़ा पंचायत के चिरूडीह गांव की हैं। जहां के लोग पोखरा के गंदे पानी पीने को मजबूर है जिन खनिजों की रक्षा के लिए झारखंड के महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा, तिलका मांझी, सिद्धू कानू, चांद भैरव, फूलों झानों जैसी अनेकों अनेक आदिवासी क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दे दिया लेकिन अभी कंपनियां उन खनिजों को हजम करने में लगा है।सरकार की BGR कंपनी रोजाना आलूबेड़ा के खदानों से हजारों ट्रक कोयला निकालती है और उसको अलग-अलग प्रदेशों में भेजती है और उससे जो मुनाफा होता है उसका कुछ हिस्सा आलूबेड़ा क्षेत्र के गांव की विकास में लगना चाहिए था,कुछ हिस्सा उन लोगों को मिलना चाहिए था लेकिन सच्चाई इसका बिल्कुल उल्टा है सरकार और कंपनियां यहां की कोयला से करोड़ों रुपया मुनाफा कमाती है उससे सिर्फ सरकार और नेताओं की जेब में जाती है यहां की विकास में नहीं?और आलूबेड़ा क्षेत्र के ग्रामीण, आदिवासी समुदाय से आते हैं और वह लोग शिक्षित नहीं होने के कारण अपना हक लेने में असमर्थ है और सरकार इन्हीं का फायदा उठाता है, और जनप्रतिनिधि एवं प्रशासन भली-भांति जानता है कि इन आदिवासियों की जिंदगी भीखमंगो से भी खराब है तो इन लोगों को ऐसे ही रखना चाहिए इनका खनिज लूटो मालामाल रहो और ऐश करो यही यहां की की सिद्धांत बन गया है एक समय गोरे अंग्रेजों ने इन लोगों को लूटा अब काले अंग्रेजों ने इन आदिवासियों को लूट रहा है।जंगल और पहाड़ों के गर्भ में स्थित खनिज सरकार की नहीं बल्कि वास्तव में आदिवासियों की है सरकार ने एक कानून बना दिया और वह खनिज, सरकार का हो गया लेकिन इन जंगलों,खनिजों का रक्षा इन आदिवासियों का पूर्वज आदिकाल से करता आ रहा है लेकिन इन खनिजों का लाभ इन आदिवासियों को बिल्कुल नहीं मिल रहा है तो आप समझ सकते हैं देश कहां जा रहा है लेकिन मीडिया की नजर इन सब चीजों पर नहीं है और ऐसे कामों में बड़े बड़े माफिया सम्मिलित रहते हैं यह लोग मरे बचे इससे शासन और प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ता।यह बहुत ही शर्मनाक स्थिति है यहां का विधायक JMM के हैं, सांसद JMM के हैं, और मुख्यमंत्री भी JMM के हैं, ट्रिपल इंजन की सरकार होने के बावजूद भी यहां की ऐसी खराब स्थिति है तो सरकार को शर्म आनी चाहिए प्रशासन को शर्म आनी चाहिए क्योंकि इन सबके होते हुए भी गांव की यह दशा है।झारखंड के गर्भ में 40% खनिज होने के बावजूद भी झारखंड का यह हालात है इसका यही मूल कारण है जो आप इस लेख में पढ़े।जो राज्य 27% अकेले कोयला देने के मामले में पहले स्थान पर आता है उस राज्य में इतनी गरीबी इतनी भूखमरी इतनी अशिक्षा क्यों?क्योंकि ऊपर से नीचे तक सब चोर है? 7 लाख 50 हजार क्रांतिकारियों का बलिदान अभी भी अधूरा है?धन्यवाद जय हिंद वंदे मातरम…🇮🇳लेखक:- धनंजय साहा (एक राष्ट्रवादी पत्रकार)

Black Gold (कोयला) से परिपूर्ण गांव के लोग पोखरा की गंदी पानी पीने को मजबूर- आलूबेड़ा।
झारखंड का एक ऐसा गांव जहां रोजाना सरकार की (BGR mining and infra limited.)कंपनी हजारों ट्रक कोयला निकालती है, लेकिन वहां लोगों के पास ना घर हैं, ना पानी, ना सड़क, ना अच्छा स्कूल, और ना अस्पताल, ना ही रोजगार हैं।
झारखंड के पाकुड़ जिले के अमड़ापाड़ा प्रखंड के एक स्वर्ण रुपी गांव आलूबेड़ा की यह सच्चाई है और यह तस्वीर आलूबेड़ा पंचायत के चिरूडीह गांव की हैं। जहां के लोग पोखरा के गंदे पानी पीने को मजबूर है जिन खनिजों की रक्षा के लिए झारखंड के महान क्रांतिकारी बिरसा मुंडा, तिलका मांझी, सिद्धू कानू, चांद भैरव, फूलों झानों जैसी अनेकों अनेक आदिवासी क्रांतिकारियों ने अपनी शहादत दे दिया लेकिन अभी कंपनियां उन खनिजों को हजम करने में लगा है।
सरकार की BGR कंपनी रोजाना आलूबेड़ा के खदानों से हजारों ट्रक कोयला निकालती है और उसको अलग-अलग प्रदेशों में भेजती है और उससे जो मुनाफा होता है उसका कुछ हिस्सा आलूबेड़ा क्षेत्र के गांव की विकास में लगना चाहिए था,कुछ हिस्सा उन लोगों को मिलना चाहिए था लेकिन सच्चाई इसका बिल्कुल उल्टा है सरकार और कंपनियां यहां की कोयला से करोड़ों रुपया मुनाफा कमाती है उससे सिर्फ सरकार और नेताओं की जेब में जाती है यहां की विकास में नहीं?
और आलूबेड़ा क्षेत्र के ग्रामीण, आदिवासी समुदाय से आते हैं और वह लोग शिक्षित नहीं होने के कारण अपना हक लेने में असमर्थ है और सरकार इन्हीं का फायदा उठाता है, और जनप्रतिनिधि एवं प्रशासन भली-भांति जानता है कि इन आदिवासियों की जिंदगी भीखमंगो से भी खराब है तो इन लोगों को ऐसे ही रखना चाहिए इनका खनिज लूटो मालामाल रहो और ऐश करो यही यहां की की सिद्धांत बन गया है एक समय गोरे अंग्रेजों ने इन लोगों को लूटा अब काले अंग्रेजों ने इन आदिवासियों को लूट रहा है।
जंगल और पहाड़ों के गर्भ में स्थित खनिज सरकार की नहीं बल्कि वास्तव में आदिवासियों की है सरकार ने एक कानून बना दिया और वह खनिज, सरकार का हो गया लेकिन इन जंगलों,खनिजों का रक्षा इन आदिवासियों का पूर्वज आदिकाल से करता आ रहा है लेकिन इन खनिजों का लाभ इन आदिवासियों को बिल्कुल नहीं मिल रहा है तो आप समझ सकते हैं देश कहां जा रहा है लेकिन मीडिया की नजर इन सब चीजों पर नहीं है और ऐसे कामों में बड़े बड़े माफिया सम्मिलित रहते हैं यह लोग मरे बचे इससे शासन और प्रशासन को कोई फर्क नहीं पड़ता।
यह बहुत ही शर्मनाक स्थिति है यहां का विधायक JMM के हैं, सांसद JMM के हैं, और मुख्यमंत्री भी JMM के हैं, ट्रिपल इंजन की सरकार होने के बावजूद भी यहां की ऐसी खराब स्थिति है तो सरकार को शर्म आनी चाहिए प्रशासन को शर्म आनी चाहिए क्योंकि इन सबके होते हुए भी गांव की यह दशा है।
झारखंड के गर्भ में 40% खनिज होने के बावजूद भी झारखंड का यह हालात है इसका यही मूल कारण है जो आप इस लेख में पढ़े।
जो राज्य 27% अकेले कोयला देने के मामले में पहले स्थान पर आता है उस राज्य में इतनी गरीबी इतनी भूखमरी इतनी अशिक्षा क्यों?
क्योंकि ऊपर से नीचे तक सब चोर है? 7 लाख 50 हजार क्रांतिकारियों का बलिदान अभी भी अधूरा है?
धन्यवाद जय हिंद वंदे मातरम…🇮🇳
लेखक:- धनंजय साहा (एक राष्ट्रवादी पत्रकार)

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