जागता झारखण्ड, राँची:- जकात हर साहिबे निसाब पर फर्ज है, जिसके पास साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या इतनी रकम हो। वह शख्स पूरे साल साहिबे निसाब रहा तो अब अपने माल का हिसाब कर जकात अदा करे। जकात तीन तरह के माल पर फर्ज है, पहला नकद रुपए बैंक में हो या घर पर। दूसरा सोने चांदी और इनके जेवर पर और तीसरा तिजारत के माल पर जकात फर्ज है। उक्त बातें रातू प्रखंड के युवा नेता सह समाजसेवी महफूज अंसारी ने बताई आगे उन्होंने बताया कि, अल्लाह ने इंसान को बेपनाह नेमतें अता की हैं। उसे हर वह चीज दी है, जो जिन्दगी गुजारने के लिए काफी है। इनमें बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके पास माले दौलत बेहिसाब है मगर दुनियाभर में बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें दो वक़्त का पेट भर खाना भी नहीं मिल पाता और ये लोग किसी तरह से अपने और अपने परिवार वालों के साथ जिन्दगी गुजर बसर करते हैं। इसलिए इस्लाम में जिसके पास दौलत है तो इस तरह के ही लोगों को जकात, फितरा और सदका देने का हुक्म दिया गया है। कुरआन करीम में बार-बार जकात का जिक्र आता है। अल्लाह तआला फरमाते है की सिर्फ यही नहीं है कि तुम अपना रुख मशरिक और मगरिब की तरफ फेर लो, बल्कि असल नेकी तो ये है कि कोई शख़्स अल्लाह और कयामत के दिन और फरिश्तों और अल्लाह की किताब और नबियों पर ईमान लाए। अल्लाह की मुहब्बत में अपना माल कराबतदारों यानी रिश्तेदारों और यतीमों और मिस्कीनों और मुसाफिरों और साइलों यानी मांगने वालों पर और गुलामों को आजाद कराने में खर्च करे और पाबंदी से नमाज पढ़े और जकात देता रहे और जब कोई वादा करे, तो उसे पूरा करे और तंगी और मुसीबत और जंग की सख्ती के वक़्त सब्र करने वाला हो। यही लोग सच्चे हैं और यही लोग परहेजगार हैं।
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