रुपवा मनवा मोहें ला : केराकत में दिव्य काली धाम तो अमिहित में विराजमान है माँ दुर्गा


जागता झारखण्ड प्रभारी यूपी

जौनपुर ( पंकज सीबी मिश्रा ) : जिले में केराकत विकासखंड में स्थित दो प्रसिद्ध शक्ति धाम आस्था का प्रबल केंद्र है। केराकत पुरानी बाजार में स्थित माँ काली मंदिर में उपस्थित काली माता के मूर्ति की भव्यता हो या केराकत से ही सटे अमिहित गांव में दुर्गा माता का दिव्य स्वरूप वाला दुर्गा मंदिर, दोनो मंदिरो पर नवरात्री उत्सव देखने लायक़ है। केराकत की काली माता, अन्य मंदिरों में स्थित मूर्तियों से भिन्न है। यहां आपको मां काली की शांत व सौम्य रूप की प्रतिमा देखने को मिलेगी। इस मूर्ति में मां का सौम्य रूप झलकता है। वैसे तो मां दुर्गा की पूजा के लिए प्रत्येक दिन और प्रतिक्षण शुभ माना जाता है परंतु नवरात्री के नौ दिन देवी मां की उपासना के लिए विशेष महत्व रखते हैं। ये नौ दिन देवी मां के द्वारा राक्षसों को मारने या बुराई पर विजय प्राप्त करने के संकेत के रूप में प्रतिवर्ष दो बार मनाये जाते हैं। हम सभी जानते है कि संसार के कल्याण के लिए मां आदि शक्ति नौ अलग अलग रूपों में प्रकट हुई थी, जिन्हें हम नव-दुर्गा कहते हैं। नवरात्री का समय मां दुर्गा के इन्ही नौ रूपों की उपासना का समय होता है, जिसमें प्रत्येक दिन देवी के अलग-अलग रूप की पूजा की जाती है। दोनो ऐतिहासिक मंदिरो कि जानकरी देते हुए समाजसेवी और पत्रकार पंकज सीबी मिश्रा नें बताया कि केराकत बाजार के मध्य नगर में स्थित मां काली मंदिर का इतिहास 148 साल पुराना है । मंदिर की विशेषताओं में एक यह कि मंदिर की ऊंचाई जितनी ऊपर है उतनी ही नीचे गहराई तक है। वर्ष 1868 के चैत्र की नवमी में मां काली की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा बड़े ही भव्य समारोह के साथ हुई थी। केराकत नगर के राय साहब परिवार के सदस्य दयाकृष्ण राय, मां काली के अनन्य भक्त थे। वह सदैव उनकी पूजा अर्चना में लीन रहा करते थे। वर्ष 1867 में एक रात को स्वप्न में मां काली ने उन्हें अपने शांत स्वरूप का दर्शन दिया और एक भव्य मंदिर निर्माण करने की प्रेरणा दी। राय साहब दयाकृष्ण स्वयं जमींदार थे। उन्हें धन की कोई कमी नहीं थी। इसलिए उन्होंने अपने मकान के बगल में मां काली का मंदिर बनाने का निश्चय किया। इतिहास बताता है कि उन्होंने स्वप्न में मां काली के जिस शांत रूप को देखा, ठीक वैसी ही मूर्ति बनवाने का निश्चय किया। वह खुद अच्छे कलाकार और मूर्तिकार थे। इसलिए अपने साथियों को लेकर वो मूर्ति निर्माण के लिए पत्थरों और मूर्ति के शहर जयपुर जाने का निर्णय किया। जयपुर में मां काली की मूर्ति के लिए कसौटी पत्थर की खोज के साथ ही जयपुर में सबसे अच्छे मूर्तिकार को मां काली की शांत मूर्ति का स्वरूप प्रदान करवाया। उधर अमिहित गांव में स्थित दुर्गा मंदिर श्रद्धालुओं के आस्था का केंद्र है। इसका निर्माण मुंबई के हरे रामा हरे कृष्णा मंदिर की तर्ज पर किया गया है। नवरात्र में दर्शन पूजन करने वालों का तांता लगा रहता है। इस मंदिर का निर्माण गांव निवासी मुंबई के प्रसिद्ध व्यवसायी श्यामलाल गुप्त ने वर्ष 1986 में कराया था। मंदिर में 40 देवी देवताओं की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। गंधार शैली में बने दो मंजिल वाले इस मंदिर के गेट पर हनुमान व शंकर भगवान की विशाल मूर्ति स्थापित की गई है। इसके अलावा गायत्री माता, मैहर देवी, वैष्णो माता, सरस्वती माता, अंबे माता, लक्ष्मी माता, शिव¨लग, गणेश, अर्धनारीश्वर, कृष्ण-अर्जुन संवाद, तिरुपति बालाजी, राम लक्ष्मण जानकी हनुमान, महावीर, गौतम बुद्ध, साईंबाबा आदि मूर्तियां दर्शनार्थियों को अपनी ओर आकर्षित करने पर विवश कर देती हैं। कृष्ण रुक्मणी, नारद, रविदास, कृष्ण-यशोदा, गाय के साथ बछड़े की मूर्ति की स्थापना अनूठे संगम की मिसाल कायम किए हुए हैं। यही नहीं संत तुलसीदास, संत ज्ञानेश्वर, संत कबीर दास, क्षीरसागर में शेषनाग पर लेटे हुए प्रसन्न मुद्रा में भगवान विष्णु, काग भुसुंडी व गरुण की मूर्तियां भी लोगों लोगों को सहज आकर्षित करती हैं। संतों की कड़ी में गुरु नानक देव, संत तुकाराम, मीराबाई एवं अवतारी पुरुषों में भक्त प्रहलाद एवं विष्णु का मत्स्य स्वरूप 12 अवतार की स्थापित मूर्तियां भव्य है । आठ साल में बना यह मंदिर पूर्वांचल में अपनी अलग पहचान रखता है। इस मंदिर में दर्शन-पूजन हेतु क्षेत्र के आस-पास के अलावा दूर-दराज से भारी तादाद में श्रद्धालु आते हैं। नवरात्री के ये नौ दिन देवी के तीन रूपों को समर्पित हैं, नवरात्रि के पहले तीन दिन देवी दुर्गा (पराक्रम की देवी), अगले तीन दिन देवी लक्ष्मी (धन और समृद्धि की देवी) और अंतिम तीन दिन देवी सरस्वती (ज्ञान की देवी) को समर्पित हैं। मां दुर्गा के नौ रूपों में से एक रूप मां काली का भी है। माना जाता है कि कुरुक्षेत्र के युद्ध में पांडवों की विजय सुनिश्चित करने के लिए अरावन ने “मां काली” को अपना बलिदान देने का निश्चय किया, जिस कारण मां ने युद्ध में विजय के लिए पांडवों को आशीर्वाद दिया था। पुराने समय में केराकत नगर में स्थित माता काली के मंदिर में नवरात्री के दौरान रोज पशुबलि दी जाती थी लेकिन दो या तीन दशकों से यह प्रथा बंद कर दी गई है। मां काली मंदिर का इतिहास कई साल पुराना है परंतु आज भी यहां नवरात्री में भक्तों की बहुत भीड़ उमड़ती है। नवरात्रि के दौरान इस प्रसिद्ध मंदिर में दर्शन-पूजन हेतु क्षेत्र के आस-पास के अलावा दूर-दराज से भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं।

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