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नशा: एक ख़ामोश हत्यारा।

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यूवा पीढ़ी को तबाही की ओर ले जाने वाला ज़हर — इससे छुटकारे के व्यक्तिगत, सामाजिक और सरकारी रास्ते ।

जागता झारखंड लेखक: डॉ. शमीम अहमद आज का सबसे गंभीर और चिंताजनक सामाजिक संकट है – नशे का बढ़ता प्रकोप। यह केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि पूरे परिवार, समाज और देश की बर्बादी का कारण बनता जा रहा है। खासकर हमारी युवा पीढ़ी इसकी गिरफ्त में आकर अपने भविष्य को अंधकारमय बना रही है।

नशे के विनाशकारी प्रभाव:

  1. शारीरिक क्षति:नशा करने वाला व्यक्ति धीरे-धीरे अंदर से कमजोर हो जाता है। उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाती है। इससे एड्स, हेपेटाइटिस, टीबी, दिल की बीमारियां, नींद में गड़बड़ी, त्वचा रोग, दांतों की समस्याएं और बालों का झड़ना जैसी समस्याएं जन्म लेती हैं।

2. मानसिक व मनोवैज्ञानिक असर:नशा याददाश्त को कमज़ोर करता है, सोचने-समझने की क्षमता को प्रभावित करता है और व्यक्ति के निर्णय लेने की शक्ति को खत्म कर देता है। डिप्रेशन, बेचैनी, भ्रम, और कई बार पागलपन जैसी मानसिक बीमारियाँ भी हो सकती हैं।

3. सामाजिक और पारिवारिक नुक़सान:नशे की लत व्यक्ति को परिवार और समाज से काट देती है। रिश्ते टूटने लगते हैं, घर का माहौल बिगड़ जाता है और सामाजिक अपमान व अकेलेपन का शिकार हो जाता है। कई बार व्यक्ति अपराध की ओर भी बढ़ने लगता है।

4. आर्थिक बर्बादी:

नशे पर खर्च होने वाला पैसा पूरे परिवार की आर्थिक स्थिति को बिगाड़ देता है। व्यक्ति कर्ज़ में डूबता है, बेरोज़गार हो जाता है और ग़लत धंधों की तरफ़ चला जाता है।

इस्लामी दृष्टिकोण:

इस्लाम में हर उस चीज़ को हराम (वर्जित) बताया गया है जो इंसान के शरीर, मन, अक़्ल या समाज के लिए नुकसानदेह हो।

“ऐ ईमान वालो! शराब, जुआ, मूर्तियाँ और किस्मत आज़माने वाले तीर ये सब गंदे शैतानी काम हैं। इनसे दूर रहो ताकि तुम सफल हो सको।

“(क़ुरआन – सूरह मायदह: 90)

नशा इंसान की अक़्ल को नष्ट कर देता है, शरीर को बीमार करता है और समाज में अव्यवस्था फैलाता है। इसलिए इस्लाम ने इसे सख़्ती से मना किया है।

नशे से छुटकारा पाने के उपाय:

1. व्यक्तिगत और पारिवारिक स्तर पर:माता-पिता बच्चों की सही परवरिश करें, उनसे संवाद बनाए रखें, उनके साथ दोस्ती का रिश्ता रखें और उन्हें इस्लामी व नैतिक शिक्षा दें। अगर कोई व्यक्ति नशे का शिकार हो जाए, तो उसे दुत्कारें नहीं, बल्कि प्यार और सहानुभूति से उसकी मदद करें।

2. सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं की भूमिका:मस्जिदें, मदरसे, उलेमा और समाजसेवी संस्थाएं नशे के विरुद्ध जन-जागरूकता अभियान चलाएं। जुमे के खुत्बों, सेमिनारों और सोशल मीडिया के माध्यम से इसके ख़िलाफ़ लोगों को जागरूक करें।

3. शैक्षणिक संस्थानों की भूमिका:स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों में नशे के दुष्परिणामों पर विशेष कार्यक्रम हों। विद्यार्थियों को खेल, प्रतियोगिताओं और रचनात्मक कार्यों में जोड़ा जाए। उनके लिए काउंसलिंग की व्यवस्था की जाए।

4. सरकारी स्तर पर कार्रवाई:नशा बेचने वालों के खिलाफ़ कड़ी क़ानूनी कार्यवाही की जाए। पुनर्वास केंद्र (rehabilitation centers) स्थापित किए जाएं। मीडिया के माध्यम से जागरूकता फैलाई जाए और युवाओं के लिए प्रशिक्षण व रोज़गार के अवसर बढ़ाए जाएं।

झारखंड सरकार की सराहनीय पहल:झारखंड सरकार द्वारा गुटखा, ज़र्दा और खैनी पर प्रतिबंध लगाना एक साहसिक और सराहनीय कदम है। अन्य राज्य सरकारों को भी इससे प्रेरणा लेनी चाहिए ताकि युवा पीढ़ी को इस ज़हर से बचाया जा सके।

अंतरराष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता:नशा एक अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क का हिस्सा है। इसके विरुद्ध विश्व स्तर पर सहयोग और रणनीति बनाना आवश्यक है ताकि इसकी तस्करी, उत्पादन और प्रसार पर रोक लगाई जा सके।

एक भावनात्मक अपील:आइए, आज ही यह संकल्प लें

हम अपने बच्चों को नशे से दूर रखेंगे

नशे के शिकार लोगों से नफरत नहीं, हमदर्दी करेंगे

समाज में जागरूकता फैलाएंगे

एक नशा-मुक्त समाज बनाने में सक्रिय भूमिका निभाएंगे✦ याद रखें:”एक स्वस्थ और संस्कारित पीढ़ी ही एक मज़बूत राष्ट्र की नींव होती है।”अल्लाह तआला हम सबको और हमारी आने वाली नस्लों को इस नशे की बर्बादी से महफूज़ रखे। आमीन।— आपका सेवक डॉ. शमीम अहमद ‘शमीमؔ’कंसल्टेंट होम्योपैथ, नेचरोपैथ, फ़िटनेस एवं न्यूट्रिशन स्पेशलिस्ट

Jagta Jharkhand
Author: Jagta Jharkhand

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