रिमी से लावालौंग सड़क पर गढ़ा या गढ्ढे में सड़क, रिमी के ग्रामीणों हैं परेशान

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लावालौंग मुख्य चौक रिमी पंचायत के रिमी में जाना खतरे से खाली नहीं

सुदूरवर्ती क्षेत्रों में बसना या घर बनाना अब गरीबों को हुआ अभिशाप रिमी

_ जागता झारखंड: बिनोद कुमार, चतरा जिला ब्यूरो की रिर्पोट_

चतरा/ लावालौंग : लावालौंग प्रखंड रिमी पंचायत के कोटर , रिमी, झिरनिया,हेठदोहर,रामपुर,झारदाग, मजडीहा, जाना खतरों की खिलाड़ी से कोई कम नहीं है। यह कोई जोक नहीं हकीकत है। गढ्ढे में सड़क या सड़क में गढ्ढा बना हुआ है। हालांकि रिमी पंचायत के कई गांव के ग्रामीणों को गुजरना इसी रास्ते से उनका मजबूरी है। चुकी इस सड़क के अलावे अन्य कोई और सड़क है नहीं। ग्रामीणों का कहना है की हम लोगों को सुदूरवर्ती क्षेत्र रिमी में बसे होने का यह सजा हैं जबकी रिमी पंचायत भवन होने के कारण इसी रास्ते बीडीओ या सीओ का आना जाना लगा रहता है।किसी भी गांव या शहर को विकसित होने के लिए पानी और सड़क की व्यवस्था मुख्य होती है।

एक तरफ केंद्र सरकार डिजिटल युग का ढोल पिट रही हैं। रिमी के सभी ग्रामीणों ऐसे में हम लोग आज भी सड़क में गढ्ढे या गढ़े में सड़क युग में जी रहे हैं। एक तरफ देश आजादी का अमृतकाल मना रहा है और हम लोग आजादी के 77 वर्ष के बाद भी आदि मानव के तरह जीने को मजबूर है। हमारी गांव की सभी सड़कें कीचड़, और गढ़ा से सना हुआ है। और हम लोगों को उसी रास्ते से आवागमन करना होता है। आपको बता दें की लावालौंग चौक से रिमी पंचायत भवन की दूरी महज 20 से 25 किलो मीटर है।

लावालौंग चौक तक सड़क एवं अन्य सुविधाओं से सुसज्जित है परंतु लावालौंग से रिमी जाने में पूरे रास्ते सेंचुरी जंगल पड़ता है। जहां ग्रामीणों ने किसी तरह आने जाने के लिए कच्ची सड़क में गढ़े और उसी सेंचुरी वन विभाग से बनाया है और इसी कच्ची रास्ते से आवागमन किया जाता है। हमारे यहां स्वास्थ सुविधाएं नहीं है यदि कोई बीमार पड़ जाता है या किसी गर्भवती महिला को परेशानी होती है तो बडी मुश्किल से लावालौंग जाना पड़ता है। ग्रामीणों का आरोप है की विधायक सांसद का जब जब चुनाव होता है तो उनके प्रतिनिधि आते है और हम लोगों को सब्जबाग दिखा वोट लेकर चले जाते है किंतु आज तक हम लोग उसी आदि मानव के तरह या कच्ची सड़क युग में जीने को मजबूर है।

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