जागता झारखंड संवाददाता रामगढ़ । उर्दू मात्र एक भाषा नहीं एक सभ्यता है। एक भावना है। एक आत्मा है जो सदियों से भारत की मिट्टी में साँस ले रही है। यह वही भाषा है जिसने गंगा-जमुनी तहज़ीब को न केवल जन्म दिया बल्कि पीढ़ी दर पीढ़ी अपनी मिठास, अपने लहजे और अपनी खुशबू में पिरोया। अफ़सोस की बात है कि कुछ वर्गों ने उर्दू को केवल एक विशेष समुदाय, एक विशेष धर्म या एक संकीर्ण मानसिकता से जोड़ कर उसे सीमित करने की कोशिश की। कभी इसे विदेशी कहा गया तो कभी इसे पक्षपात का शिकार बनाया गया लेकिन उर्दू ने सदा प्रेम, एकता और भाईचारे का ध्वज ऊँचा रखा।ऐसे नाज़ुक दौर में जब भाषाओं को धर्म का जामा पहना कर बाँटने की राजनीति की जा रही हो भारत की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट ने 14 अप्रैल 2025 को एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए यह सिद्ध कर दिया कि भाषा धर्म नहीं होती, भाषा किसी कौम या मज़हब की जागीर नहीं होती बल्कि भाषा एक सभ्यता की पहचान, एक भूमि की पहचान और जनता की आवाज़ होती है।महाराष्ट्र के पातूर नगरपालिका परिषद के साइनबोर्ड पर उर्दू भाषा के प्रयोग को चुनौती देने वाली याचिका पर निर्णय देते हुए न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन ने कहा:”It is a misconception that Urdu is alien to India.”(यह एक भ्रांति है कि उर्दू भारत के लिए पराई भाषा है।)”It is a language which was born in this land.”(यह वही भाषा है जो इसी धरती पर जन्मी है।)उन्होंने यह भी कहा:”Language is not religion.”(भाषा धर्म नहीं होती।)”Language does not even represent religion.”(भाषा धर्म का प्रतिनिधित्व भी नहीं करती।)”Language belongs to a community, to a region, to a people; and not to a religion.”(भाषा किसी समुदाय, किसी क्षेत्र और किसी जनसमूह की होती है, किसी धर्म की नहीं।)सर्वोच्च न्यायालय ने उर्दू को”The finest specimen of Ganga-Jamuni tehzeeb”(गंगा-जमुनी तहज़ीब का सर्वोत्तम उदाहरण) बताकर इसकी सांस्कृतिक महत्ता और ऐतिहासिक विरासत को मान्यता दी। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि उर्दू अथवा कोई भी भाषा हमारे राष्ट्रीय विविधता की सुंदर प्रतीक है और यही हमारी शक्ति है न कि कमजोरी।मैं डॉ. अशरफ अली इस दूरदर्शी एवं प्रभावशाली निर्णय पर भारत के माननीय सुप्रीम कोर्ट और आदरणीय न्यायमूर्तियों को हृदय की गहराइयों से अभिनंदन , साधुवाद एवं सम्मान प्रकट करता हूँ।” यह निर्णय केवल उर्दू के संरक्षण का प्रतीक नहीं बल्कि भारत की भाषायी एकता, संवैधानिक समता और सांस्कृतिक धरोहर के रक्षण की दिशा में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।
